
Zikrr ❤ 💔

तुम्हारे लफ़्ज़ों में ज़िक्र क्यों ‘तुम्हारा’ है, ”हमारा” नहीं,
तुम्हारे प्यार में ज़िक्र क्यों ‘तुम्हारा’ है, “हमारा” नहीं ।
दूर जाओगे तो अलग हम होंगे,
खुशी के पल कुछ यूं कम होंगे-
रह जाएंगे हम यूं ही अधूरे से ,
जैसे सूरज के बिना अधूरी किसी सुबह से,
खुशबू के बिना अधूरे किसी फूल से,
मिट्टी के बिना अधूरी उस ज़मीन से,
पत्तों के बिना अधूरे उस पेड़ से,
बूंदों के बिना अधूरे उन बादलों से,
फटे पन्नों की उस किताब से-
जो होते तो हैं,
पर
कुछ पूरे से , कुछ अधूरे से,
कुछ बिखरे से , कुछ सिमटे से,
अपनी ही कहानी कहते हैं वो
जो खुद ही में पूरी है , अधूरी नहीं,
जिनमें प्यार भरा है, तकरार नहीं,
जो “हमारी” है, मेरी या तुम्हारी नहीं।
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ज़िक्र क्यों ‘तुम्हारा’ है, “हमारा” नहीं,
तुम्हारेे प्यार में ज़िक्र क्यों ‘तुम्हारा’ है “हमारा” नहीं।।
– Akanksha Singhal
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